Rainwater Harvesting

वर्षा जल संरक्षण

विश्व मानव इस आशंका में है कि तीसरे विश्व युद्ध का कारण पानी हो सकता है। भ्रमित मानव अपने ही हितों के विरुद्ध बहुआयामी विकास योजनाओं को पूरे क्रम में प्राकृतिक सम्पदाओं को बेरहमीपूर्वक उलीच रहा है, फिर पानी को कैसे बख्शे? पानी पहली आवश्यकता है।
शिक्षा, चिकित्सा आदि प्रकल्पों एवं वन-यात्राओं के दौरान कोलकाता-हावड़ा महानगर कार्यकर्ता वनवासियों की समस्या का मूल समझने लगा। पानी के अभाव में बीमारी एवं साथ ही धरती का जलस्तर नीचे जाने से प्राकृतिक चक्र का असंतुलन वनवासी को तार-तार कर रहा है। समाधान के रूप में अन्य कार्यक्रमों के अलावा ‘जल संरक्षण एवं पुनर्भरण’ अभियान चलाया गया। गांव का वनवासी तैयार हुआ, और अब शहर से सहयोग माँगा गया।

इस योजना के लाभ:

वर्ष में दो या अधिक फसलें। वनवासी पूरे वर्ष भरपेट खाने लायक अनाज पैदा कर लेगा। फलदार पेड़, औषधीय वनस्पति और मौसम की सब्जियां पैदा हो सकेंगी। मछली – अतिरिक्त लाभ। धरती का जलस्तर ऊपर आने से प्राकृतिक संतुलन में बड़ी भागीदारी।

चार योजनाओं पर कार्य करना है:

१. सामुदायिक जल-पुनर्भरण योजना – इसमें प्रस्तावित जमीन १५०’x १५०’ का जलाशय बनाया जाता है, जिसमे लगभग दो लाख क्यूबिक फ़ीट पानी संग्रहित होता है। इसकी लागत अनुमानतः दो ढाई लाख रुपये है, और अपने गांव के आसपास के लोगों/जानवरों को भी लाभ पहुंचाता है।

२. स्थानीय भण्डारण योजना – इसमें ५०’x५०’x१५’ का जलाशय खोदा जाता है जिसमे हजारों क्यूबिक फ़ीट पानी संग्रहित हो सकता है। लगभग २५ हजार की लागत से यह भण्डारण अपने परिवारों के साथ-साथ आस-पास के लोगों को भी लाभान्वित करता है। काम लागत की यह योजना एक साथ कई गांवों में चालू की जा सकती है। इसका व्यापक स्तर पर लाभ होना संभव है।

३. व्यक्तिगत भण्डारण – इसमें ३०’x३०’x१५’ का जलाशय बनाया जाता है, जिसमे ६ हज़ार क्यूबिक फ़ीट पानी संग्रहित हो सके। मात्रा ५ हजार रूपये की लागत से बना यह भण्डारण एक-एक परिवार के स्वावलम्बन की दिशा में अतीव उपयोगी है। एक परिवार के लिए यह योजना फल देने लगे तो पूरा गांव इसके लिए तैयार है और फिर आस-पास के सारे गांव स्वप्रेरणा से ही जल संरक्षण में लग सकते हैं।

४. चेक-डेम योजना – वर्षा जल के तीव्र बहाव के रास्ते में योग्य कटाव पर डेम बने जाता है। यह योजना लागू करने के लिए पूरे क्षेत्र का सर्वेक्षण करके डेम योग्य स्थान का चुनाव मुख्या बात है। इससे आस-पास के सभी गांव लाभान्वित होते हैं। उपजाऊ मिटटी पानी के साथ बहकर नदी में नहीं मिल जाती बल्कि उसी जमीन पर अनेक फलदार औषधीय पेड़-पौधों के लिए उपयोगी बन जाती है।

अब तक मिली सफलता – मात्र दो ही वर्षों में इस योजना के अंतर्गत अयोध्या पहाड़, बीरभूम और मल्लारपुर में कुल चार स्थानों पर फलदायी कार्य कर पाए हैं। अयोध्या पहाड़ में सामुदायिक जल भण्डारण और बीरभूम-मल्लारपुर में तीन स्थानीय जल-भण्डारण बनाये गए हैं।

इस तरह किसान अपनी जमीन का ५-७% हिस्सा जलाशय के लिए उपयोग कर बची हुई ९५% जमीन की खेती को लाभान्वित कर सकता है।

Rainwater Harvesting

People living in some tribal areas of Ayodhya Hills in Purulia, Bankura etc. are found to be very malnourished. The reason is acute poverty. Most of the land in that area, which is also called the desert of West Bengal, is barren and uncultivable. Even the land which is cultivable can bear only one crop during the year due to low rainfall. Sometimes even that one crop is lost due to erratic rainfall adding to the woes of the people even further. In the dry season, landless laborers as well as small farmers have to travel to faraway places in search of employment and women have to go to distant places to collect water for their household needs.

After an extensive study, it was observed that Rainwater can be stored during the rainy season in small or big ponds dug in the land voluntarily given by farmers. This water can serve either one family or five to six families or an entire village depending upon the size of the reservoir.

The water thus stored can serve not only to ensure sufficient water supply for the first crop in case of erratic rainfall, but it can also make the 2nd crop a definite possibility. The stored water in these ponds can also help in raising the underground water table level and thus the wells in the areas can remain functional for a longer period.

This project conceived and undertaken by Kalyan Ashram has benefitted the tribals in many ways:

  • Economic development of the people has been assured.
  • Landless people now get employment all year round.
  • People are now able to turn their attention to the education of their children.
  • It has become easier to approach them and educate them on health and hygiene matters.