Swawalamban

स्वावलम्बन

स्वावलम्बन अर्थात अपनी क्षमताओं का विकास – अपना पसीना बहाकर परिश्रम से अर्जित धन के सहारे जीने के सुख से बढ़कर और कोई बड़ा आनंद नहीं होता। कहावत है कि कमाई गई रोटी दान में या उपहार में मिली रोटी से लाख गुना अच्छी होती है। जब हम कोई काम स्वयं करते हैं तो वह परिपूर्ण होता है और हमें अत्यंत संतोष की अनुभूति होती है। समाज के एक उपेक्षित वर्ग को मुख्य धारा के साथ जोड़ने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के इसी उद्देश्य के साथ बालासाहेब देशपांडे जी ने २६ दिसंबर १९५२ को वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना की थी। आज उनका यह सपना कई हज़ार गुना होकर साकार हुआ है। आज कश्मीर से कन्याकुमारी तक कल्याण आश्रम के कार्यकर्ताओं ने विभिन्न क्षेत्रों में स्वावलम्बन की दिशा में सराहनीय कार्य किया है। हमारे विभिन्न केंद्रों में वनबन्धुओं को शैक्षिक योग्यताओं के साथ सिलाई-कढ़ाई और तकनीकी शिक्षा में निपुण बनाने का प्रयास किया जाता है जिससे वे संसार में अपना मस्तक ऊंचा उठाकर जी सकें और अपनी पहचान बना सकें। गांव-गांव में स्वयं सहायता समूह के माध्यम से वनवासियों के स्वावलम्बन का मार्ग प्रशस्त किया जा रहा है। वनवासियों को विभिन्न प्रकार के कुटीर उद्योग, गोबर गैस प्लांट, कृषि विकास (खेती-बारी), पशु पालन, सिलाई-कढ़ाई, वनोपज से अनेक प्रकार की खाद्य सामग्री एवं अन्य उपयोगी वस्तुओं के निर्माण का प्रशिक्षण दिया जाता है। आज का वनबंधु अकेला नहीं है, उसके अधिकारों के लिए हम सदा प्रयत्नशील हैं, और यह कार्य तब तक अबाध रूप से चलता रहेगा जब तक मनुष्य जाति के हृदय में संवेदना है, मनुष्यत्व है और ‘तू मैं एक रक्त’ का भाव है।

Self-Reliance

Skill and ability development –
Earning your food by your own efforts and hard work gives a lot of happiness, satisfaction and self-respect rather than procuring the same through donations of others. With the Goal to bring a neglected section of our society into the mainstream and to make them self-reliant, Shri Balasahebji Despande laid the foundation of Vanvasi Kalyan Ashram on 26th December 1952 at Jashpur in Madhya Pradesh. In the last 69 years, the dedicated workers of Kalyan Ashram have done remarkable work throughout the tribal areas of our country in creating self-reliance in various fields among our brothers living in these remote and inaccessible areas and have gone a long way in fulfilling the dream of our founders. In our various centres spread across the country, besides academic education, our tribal brethren are given technical education in various fields so that they may be able to raise their heads and live a life of self-respect in the society. Self help groups are created to further help in self-reliance. Training is provided in various cottage industries like Gobar Gas plant, agricultural growth, livestock breeding, sewing, knitting, procurement and processing of various food and other valuable forest products.