शिक्षा
सभी मनोवैज्ञानिक व समाजशास्त्री निर्विवाद रूप से यह मानते हैं कि शिक्षा द्वारा बालक-बालिकाओं के व्यक्तित्व एवं अंतर्निहित गुणों का विकास होता है। इसीलिए भारतीय संविधान में भी यह प्रावधान है कि 14 वर्ष की आयु तक अर्थात् कक्षा 8 तक की शिक्षा अनिवार्य रूप से शासन देश के हर बालक-बालिका को उपलब्ध कराएं। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि आज भी कई वनवासी बालकों को प्राथमिक विद्यालय में जाने हेतु 3 से 4 किलोमीटर चलना पड़ता है। माध्यमिक शिक्षा हेतु विकासखंड अथवा जिला केंद्र तक जाकर वहां छात्रावासों में रहकर पढ़ना होता है। महाविद्यालय की शिक्षा तो विशेष प्रयास करने पर ही मिलती है।
वनवासी क्षेत्रों में शिक्षा सुविधाओं का अत्यंत अभाव है। अधिकांश वनवासी गांवों में विद्यालय ही नहीं है। जहां विद्यालय है वहां अध्यापक नहीं है, जहां अध्यापक है वहां वे नियमित आते नहीं है, और जहां अध्यापक नियमित आते हैं वे बच्चों को मनोयोग पूर्वक पढ़ाते नहीं है। इस परिप्रेक्ष्य में वनवासी बालक अध्ययन कैसे करता होगा; इसका हम अंदाजा लगा सकते हैं।