आशुतोष शिव भारतीय संस्कृति के सर्वोत्तम प्रतीक हैं। प्रत्येक सनातन धर्मावलंबी भगवान शिव की आराधना अवश्य करता है। शिव का अर्थ ही कल्याण करने वाला होता है। अतः इनका वंदन सर्व कल्याणकारी है। जब-जब भक्तों पर संकट आता है, शिवजी समाधान की राह प्रशस्त करते हैं। शिवजी वस्तुत: देवों के देव हैं। इन्हें महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रूद्र, नीलकंठ आदि नामों से भी जाना जाता है। शिव में परस्पर विरोधी भावों का सामंजस्य दिखाई पड़ता है। शिव के मस्तक पर एक ओर चंद्र है तो दूसरी ओर महाविषधर सर्प भी उनके गले का हार है। अर्धनारीश्वर होते हुए भी कामजयी हैं। गृहस्थ होते हुए भी श्मशानवासी, वीतरागी हैं। सौम्य आशुतोष होते हुए भी भयंकर रूद्र हैं।
शिव परिवार तो परस्पर विरोधी भावों के सामंजस्य का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। शिव परिवार में शिवजी, पार्वती जी, गणेश जी, कार्तिकेय स्वामी के साथ ही चूहा, नाग, मोर, नंदी और शेर भी शामिल हैं। ये सभी प्राणी एक दूसरे के शत्रु हैं लेकिन शिव जी के परिवार में एक साथ सौमनस्यतापूर्वक रहते हैं। शिव जी का वाहन नंदी है। देवी पार्वती का वाहन सिंह है, गणेश जी का वाहन चूहा है और कार्तिकेय स्वामी का वाहन है मोर। नाग चूहे का शत्रु है, मोर नाग का शत्रु है, शेर नंदी का शत्रु है, लेकिन ये सभी एक साथ एक परिवार में रहते हैं और कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। शिव परिवार के यह वाहन हमें संदेश देते हैं कि परिवार में सभी लोगों के विचार अलग-अलग होते हैं लेकिन हमें एकता बनाए रखनी है और मिल जुल कर रहना है। क्या ही अद्भुत संदेश! सभी की प्रकृति अलग-अलग पर एक परिवार में साथ-साथ रहते हैं।
वनवासी के साथ एकात्मता का सर्वोच्च प्रतिमान है शिव। हम सब जानते हैं कि वनवासी प्रकृति के पूजक हैं। इनके इष्ट जल, अग्नि, वायु, सूर्य इत्यादि हैं और एक शक्ति जो इन सभी को संचालित करती है, उसे वेदों में रुद्र कहकर संबोधित किया गया। ये रूद्र ही शिव हैं। वन के हिंसक पशु भी वल्कल धारण करने वाले शिव के अनुचर हैं। भूत-प्रेत आदि उनके अनुयायी हैं। अपनी बारात में उन्होंने सर्वप्रथम इस उपेक्षित वंचित वर्ग को आमंत्रित किया। बाकी देवों का क्रम बाद में आया। आज भी भारत के प्रत्येक वनवासी क्षेत्र में सर्वप्रथम शिवजी की पूजा होती है। शिव पूजन के लिए वे पत्थर के लिंग को पूजते हैं।
जो भी हो, शिव अभयंकर है, शिव प्रलयंकर हैं, तो शिव आशुतोष भी हैं, भोले भंडारी भी हैं। उन्हें त्रयंबक कहा गया है क्योंकि उनके त्रिनेत्र हैं। चर्म चक्षु के अलावा मर्म चक्षु यानी आत्मा की आंखें खोलने का संदेश है शिव का जीवन। कोई भी सच्चे मन से उनकी आराधना करें तो वे खुश हो वर दे देते हैं, चाहे वह रावण हो या भस्मासुर। वे ऐसे देव हैं जो वन में रहते हैं। जिन्हें न तो स्वर्ण महल चाहिए, न स्वर्ण आभूषण, न सुंदर वस्त्र। उनके आभूषण तो सर्प, बिच्छू इत्यादि हैं। समुद्र मंथन के समय विषपान की बात हुई तो शिव ने सहर्ष विषपान किया। वे द्वन्द्वों से रहित तथा सह-अस्तित्व के साक्षात् प्रतिमान हैं।
कल्याण आश्रम द्वारा आगामी पावन पुरुषोत्तम मास में आयोजित शिव पुराण कथा जन जन के अंतचर्क्षु उद्घाटित करने, सदियों से उपेक्षित वनवासी समाज के प्रति दायित्व बोध जागृत करने एवं श्रद्धा- भक्ति की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बने। इसी कामना के साथ हर- हर महादेव!
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Shashi Modi
हर हर महादेव। वनवासी और महादेव, सुंदर विवेचना।